नभ के नीले सूनेपन में हैं टूट रहे बरसे बादर जाने क्यों टूट रहा है तन! वन में चिड़ियों के चलने से हैं टूट रहे पत्ते चरमर जाने क्यों टूट रहा है मन! घर के बर्तन की खन-खन में हैं टूट रहे दुपहर के स्वर जाने कैसा लगता जीवन!
हिंदी समय में नामवर सिंह की रचनाएँ